Monday, 12 August 2019

समझा या समझौता

प्यार किया था मुझसे,
पता भी चला तुम्ही से!
करते थे हमेशा प्यार भरी बातें,
रूठती तो लग जाते थे मनाने।

प्यार कर बैठी तुमसे,
लगा था कि समझोगे मुझे।
माफ़ भी कर देते थे सारी गलतियाँ,
तुम्ही से तो बन गयी थी मेरी सारी खुशियाँ।

ख्याल रखना, आता था तुम्हे,
बस मुझे समझने की कोशिश कभी न की तुमने।
प्यार तो अब भी उतना ही करते हो बेशक,
मेरी ज़िद्द भी पूरी करते हो, हर वक़्त।

कुछ हो जाता, तो किसी को 
बताने की आदत ना थी,
अब भी वैसी ही हूँ,
मैं बदली ना थी।
लेकिन अब अगर तुमसे रुठ जाऊँ,
तो बताओ, कहाँ मैं जाऊं?
रो कर बस अपने मन को बहलाऊँ।

बस यही तो चाहती हूँ की
तुम आकर मना लो,
खुश करने के बाद,
"क्या हुआ था?" पूछ लो।

खुश तो करना आता था तुम्हें,
पर कभी जाना तो नहीं मुझे।
मन मेरा शायद हल्का हो जाता,
अगर बात हो जाती तुमसे।

कहा तो था तुमने साथ में मिल,
बात करेंगे, जब हो कोई मुश्किल।
पर कभी वक़्त तो निकाल लेते,
जोड़ने में मेरा, ये टुटा हुआ दिल!

ये हँसी तो आपको देखते ही आ जाती है,
लेकिन क्या करें उन रातों का,
जो रो कर बिताई जाती है?

अगर होता ही इतना आसान,
तो क्या खुद ही कभी अपनी बातें ना बाँट लेती?
बस, तुम्हारे पूछने की कोशिश तो थी,
पर उसमे थोड़ी सी कहीं कमी रह गयी।
पूछता तो था हर कोई इंसान,
पर कोई सही इंसान ना मिला,
और जब कोई मिल भी गया,
पर वो वह 'इंसान' ना बन पाया!